
आध्यात्मिक ज्ञान और सर्व शक्तियों की चैतन्य मूर्ति थी,मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती – दीदी विभूति बहन
काछोला तपस्या भवन पर मातेश्वरी जगदम्बा जी की 59 वी पुण्य स्मृति दिवस मनाया
काछोला 24 जून-स्मार्ट हलचल/प्रजापिता ईश्वरीय विश्वविद्यालय तपस्या भवन काछोला में ब्रह्माकुमारी संस्थान की प्रथम मुख्य संचालिका मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती की 59 वीं पुण्य स्मृति दिवस आध्यात्मिक ज्ञान दिवस के रूप में तपस्या भवन की संचालिका दीदी विभूति बहन के सानिध्य में मनाई गई ।
ब्रह्मा कुमार , कुमारियों ने मातेश्वरी जगदंबा सरस्वती को अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि पुष्प अर्पित करते हुए दिव्य गुणों को धारण करने का संकल्प लेकर दी।
विभूति दीदी ने अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलयुग में आत्मा यात्रा करते हुए कहां से कहां पहुंच जाती है। इस संगम युग में पवित्र बनकर राजयोग का अभ्यास करें और समर्पण और सहयोग की भावना रखने का संदेश दिया ।
वही दीदी ने मम्मा की विशेषताओं, चमत्कारिक आध्यात्मिक व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मम्मा का जन्म 1919 में अमृतसर के हीरे जवाहरात और घी के व्यापारी के घर हुआ। उनके बचपन का नाम राधे था। केवल 16 वर्ष की आयु में ही यज्ञ सेवा में आई और सर्वस्व जीवन ईश्वरीय कार्य अर्थ समर्पित किया। ज्ञान में आते ही जिम्मेदारियों को अपने जीवन में ऐसे ढाला की मम्मा का टाइटल प्राप्त हो गया। पढ़ाई में होशियार होने के साथ गीत, कविता, डांस आदि गुणों से भरपूर थी। मम्मा मीठे स्वर से ओम ध्वनि का उच्चारण करती थी जिसके कारण उनका नाम राधे से ओम राधे हो गया। उन्हें देखते ही देवी व लक्ष्मी का साक्षात्कार होने लगता था। लाखों मनुष्य आत्माओं को मातृत्व की सुखद आंचल की छत्रछाया की पालना करके अपने ममतामई स्वरूप को प्रकट किया।
उस दौर में जब माताएं ,बहने घर की चारदीवारी तक ही सीमित थी ।मधुर वाणी, रॉयल चाल, , गंभीरता, कम बोलना आदि देवी गुण संपन्न देखकर हर किसी के मुख से निकलता था यह तो देवी है । ज्ञान योग और पवित्रता के बल से विश्व की सेवा करते हुए 24 जून 1965 को अंतिम सांस ली।
दीदी ने कहा कि देवियों की सारी दुनिया में पूजा करते हैं पर जानते नहीं। आज दुनिया में अंधश्रद्धा बढ़ती जा रही है। परमपिता परमात्मा कैसे ऊंची हस्तियों से हमें मिला रहे हैं। चारों ओर माया का साम्राज्य होने के कारण अनेक फालतू विकल्प मन को तंग करते हैं। हमें खुद सावधान रहकर दूसरों को भी सावधान करना है । परमात्मा के ज्ञान की मंजिल बहुत ऊंची है । तन ,मन, धन सब उस प्रभु को अर्पण कर दो तो श्रेष्ठ कर्मों से ही भाग्य बनेगा । जब-जब संसार में दिव्यता की कमी, धर्म की ग्लानि, समाज में अन्याय, अत्याचार, चरित्र में गिरावट, अशांति के बीज पनपने लगते हैं तब तब इन समस्त बुराइयों को समाप्त करने के लिए किसी महान विभूति का जन्म होता है।
हम सब भी पुण्य स्मृति दिवस पर दिव्य गुणों को धारण करने का संकल्प करेंगे।
अंत में सभी भाई बहनों ने ईश्वरीय प्रसाद पाकर अपने आपको धन्य समझा।